परिंदे कहानी का प्रकाशन 1960 में हुआ।
जो कि एक दुनिया समानांतर में संकलित है।
कई विद्वानों ने इस कहानी से नई कहानी आंदोलन की शुरुआत माना है।
अकेलेपन के जीवन को और अकेलेपन से जूझते हुए कई परेशानियों का जिक्र मिलता है।
यही कारण है कि इस कहानी का नाम परिंदे रखा गया है।
कहानी लतिका नामक पात्र के इर्दगिर्द घूमती है।
जहाँ वो अपने भूतकाल के जीवन से न उभर पाने की पीड़ा में चिंतित है और बेहद अकेली भी।
कहानी के पात्र
लतिका – कहानी की केंद्रीय पात्र है। छात्रावास की वार्डेन है।
मेजर गिरीश नेगी – लतिका के पूर्व प्रेमी जो कि अब इस दुनिया में नहीं है। जो कि कुमाऊँ रेजिमेंट में कैप्टन था।
सुधा और जूली– छात्रावास की छात्रा।
करीमुद्दीन – हॉस्टल का नौकर। जो कि बेहद आलसी इंसान था।
मि. ह्यूबर्ट – लतिका को पसंद करते है। स्कूल में संगीत शिक्षक है।
डॉ. मुखर्जी – जो लतिका को समय-समय पर मार्गदर्शन किया करते है। जो कि आधे बर्मी थे।
एक बार बर्मा जाने की बातें हमेशा किया करते थे।
जो यहाँ बस चुके थे प्रैक्टिस के अलावा स्कूल में हाईजीन-फिजियोलॉजी पढ़ाते थे।
मिस वुड – स्कूल की प्रिंसिपल।
फादर एलमण्ड – पादरी।
परिंदे कहानी की समीक्षा
कहानी की शुरुआत छात्रावास के छुट्टियों के अंतिम दिन से होती है।
जहाँ लड़कियाँ अंतिम दिन का आनंद ले रही होती है।
किन्तु लतिका अपने अंदर व्याप्त अकेलेपन से जूझती रहती है।
लोगों के उसके प्रति सोच के बारे में सोचती रहती है कि सभी जानते है वह हमेशा छुट्टियों में यही रहती और हमेशा एक ही बहाना बनाती है।
उसे उस छोटे से हिल स्टेशन की स्नो फॉल बेहद पसंद है इसीलिए वो घर नहीं जा रही।
लतिका को डॉ. मुखर्जी और मि. ह्यूबर्ट अपने कमरे पर एक कॉन्सर्ट पर निमंत्रण देते है।
वह मना करती है पर फिर भी उसे आना ही पड़ता है।
लतिका वहाँ जाकर भी खुद में ही खोई रहती है।
सोचती है कि क्या वो बूढ़ी हो गयी है अपनी स्कूल की प्रिंसिपल की तरह।
तभी उसे याद आया कि मि. ह्यूबर्ट का प्रेमपत्र जो उसे कुछ महीने पहले मिला था।
इससे उसे यह तसल्ली हुई कि वह अभी बूढ़ी नहीं हुई अभी भी उसमें आकर्षण बाकी है।
तभी वह वहाँ से उठ कर चली जाती है।
डॉ. मुखर्जी भी अकेलेपन से ग्रस्त है वह अपने बारे में कुछ भी किसी से बताते नहीं।
पर सब कहते है कि बर्मा से आते वक्त डॉ की पत्नी का देहांत हो गया था।
डॉ हमेशा बर्मा जाने की बात करते रहते।
डॉ के अकेलेपन का जिक्र इस वाक्य से होता है जो वह मि. ह्यूबर्ट से कहते हैं –
“मैं कभी-कभी सोचता हूँ, इंसान जिंदा किस लिए रहता है- क्या उसे कोई और बेहतर काम करने को नहीं मिला ? हजारों मील अपने मुल्क से दूर मैं यहाँ पड़ा हूँ – यहाँ कौन मुझे जानता है, यहीं शायद मर भी जाऊँगा। ह्यूबर्ट, क्या तुमने कभी महसूस किया है कि एक अजनबी की हैसियत से परायी जमीन पर मर जाना काफ़ी खौफ़नाक बात हैं…”
– डॉ मुखर्जी ने मि. ह्यूबर्ट से कहा।
डॉ लतिका और गिरीश नेगी के प्रेम प्रसंग के बारे में बताते है।
गिरीश नेगी के साथ उसकी अंतिम मुलाकात के बारे में और उसके पश्चात उसकी मृत्यु हो जाती है।
लतिका स्कूल के समारोह में गिरीश नेगी से वह अनकही बातें सोचने लगी जिन्हें वो कहना चाहती थी पर कभी कह नहीं पाई।
वह हमेशा अकेलेपन में पुरानी यादों तले घुटती रहती है ।
वह पुरानी यादों से मुक्त नहीं हो पा रही।
कहानी बीच-बीच में पुरानी स्मृति में चली जाती है जिसमें लतिका और गिरीश के बीते दिनों की बातें होती है।
लतिका पुरानी यादों के दुख से निकलना चाहती है किंतु उससे उसका कुछ छीना जा रहा हो ऐसा प्रतीत होता है।
परिंदों का बेड़ा जो हर साल सर्दी के छुट्टियों के समय आता है और बर्फ के आने की प्रतीक्षा करते है जब वह वापस उड़ जाएंगे।
उन परिंदों से अपने आप को, डॉ और ह्यूबर्ट से तुलना करती है हम कहाँ जाएगे ?
किसी चीज़ को न जानना यदि गलत है, तो जान-बूझकर न भूल पाना, हमेशा जोंक की तरह उससे चिपटे रहना, यह भी गलत है।
– डॉ ने लतिका से कहा।
कहानी में बीते कल की पीड़ाजनक बातें को भूल कर आगे के जीवन को खुशी-खुशी जीने की बात बतलाई गयी है।
किसी के न होने के गम में दुखी होकर जिंदगी को नीरस बनाने से बेहतर है अच्छी बातें को याद कर जिंदगी में आगे बढ़े।
जिंदगी कभी किसी के न होने के अभाव से ख़त्म नहीं हो जाती बल्कि उसके बाद भी जिंदगी होती है।
कहानी के अंत में लतिका को इस बात की समझ होती है।
इसलिए वह जुली को उसके प्रेमी के पत्र उसके सिराहने तले रख देती है कि बजाय उदास रहने के सभी को जिंदगी जीने का हक है।
परिंदे कहानी अन्य कहानी से हटकर है जिसमें संवेदनापूर्ण स्तिथि का यथावत चित्रण है।
अत्यंत सशक्त और प्रभावोत्पादक शैली में किया गया है।
यह पाठक पर अलग ही प्रभाव उत्पन्न करता है जो छणिक नहीं होता।
पाठक को यह सोचने पर मज़बूर कर देती है।