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आकाशदीप कहानी – जयशंकर प्रसाद की समीक्षा,सारांश/सार और पात्र

आकाशदीप कहानी का प्रकाशन 1929 में किया गया।

आकाशदीप कहानी में बेहद सृजनात्मक ढंग से इतिहास और कल्पना के बीच तारतम्यता दिखाया गया है।

आकाशदीप कहानी प्रसाद के कथा साहित्य का मील स्तंभ है।

यह कहानी प्रेम की काव्यात्मक अभिव्यक्ति है।

कहानी के पात्र

बुद्धगुप्त – कहानी का नायक और समुद्री डाकू, दस्यु। बहादुर और वीर पुरुष। जो कि चंपा और खुद को मणिभद्र के चंगुल से आज़ाद करवाता है।

चंपा – कहानी की नायिका, क्षत्रिय बालिका और केंद्रीय पात्र है। जलदस्यु की कैदी। बुद्धगुप्त की प्रेमिका।

मणिभद्र – समुद्री व्यापारी। जिसने चंपा और बुद्धगुप्त को बंदी बना रखा है।

जया – जंगल में निवास करने वाली युवती।

आकाशदीप कहानी की समीक्षा

कहानी का सम्पूर्ण परिवेश प्राचीन काल का है।

लेकिन इसमें किसी काल या ऐतिहासिक घटना के प्रमाण नहीं प्राप्त होते है।

किंतु प्रसाद जी ने प्राचीन परिवेश का निर्माण कथा की अभिव्यक्ति चरित्र-चित्रण और भाषाशैली के रूपों में किया है।

तारक-खचित नील अम्बर और समुद्र के अवकाश में पवन उधम मचा रहा था। समुद्र में आंदोलन था। नौका विकल हो रही थी।

कहानी का प्रारंभ समुद्र कि स्तिथि का वर्णन ।

आकाशदीप कहानी की शुरुआत दो बंदी चंपा और बुद्धगुप्त को अपने बंधन आज़ाद करने से होती है।

बुद्धगुप्त ने द्वंद्व युद्ध कर के उस नाव पर अपना कब्जा किया।

नाव पर मणिभद्र के सैनिकों को भी पराजित कर नाव पर आधिपत्य जमा लेता है।

इसी दौरान यह पता चलता है कि बुद्धगुप्त एक समुद्री डाकु है, जिसने मणिभद्र के नाव पर हमला किया ।

चंपा के पिता की मृत्यु बुद्धगुप्त से लड़ते हुए होती है।

मणिभद्र एकेली चंपा से वासना का घृणित प्रस्ताव रखता है।

चंपा के मना करने पर उसे बंदी बना लिया जाता है।

चंपा और बुद्धगुप्त मुक्त होने के बाद एक अज्ञात द्वीप पर पहुचते है।

बुद्धगुप्त इस द्वीप का नाम चंपा द्वीप रखता है।

यहाँ रहते चंपा और बुद्धगुप्त को पाँच वर्ष बीत जाते है।

बुद्धगुप्त ने दस्युवृति छोड़ दी है और व्यापार से बहुत धन कमाया और चंपा के साथ रहने लगता है।

दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगते है।

चंपा उसके पिता के मृत्यु का दोषी बुद्धगुप्त के बारे में जान जाती है।

उसके ही आक्रमण के समय उसके पिता ने जल समाधी ले ली थी।

बुद्धगुप्त अपने मन में चंपा के लिए प्रेम को जाहिर करता है और अपने प्रेम को सिद्ध करने के लिए कुछ भी करने को राजी रहता है।

अपने प्राणों की भी आहुति देने को भी तैयार रहता है।

इसके पश्चात चंपा ने अपने मन में बुद्धगुप्त के लिए प्रेम को जाहिर करती है।

तत्पश्चात बुद्धगुप्त चंपा से विवाह करने का भी प्रस्ताव उसके समक्ष रखता है।

वह चंपा को अपने साथ स्वदेश भारत चलने को कहता है किन्तु वह मना कर देती है।

वह कहती है मैं इस द्वीप पर ही रहूँगी इन सब लोगों की सेवा करूँगी।

चंपा अपने प्रेम का त्याग कर्तव्यों के लिए कर देती है।

उस द्वीप से उसके पिता की यादें जुड़ी थी।

आकाशदीप कहानी में प्रेम का अंतर्द्वंद बेहद मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

इसीलिए भाव प्रधान कहानियों में “आकाशदीप” को श्रेष्ठ कहानी माना जाता है

इसमे खड़ी बोली का सहज रूप दिखता है।

तत्सम शब्दों की बहुलता भी परिलक्षित होती है।

कहानी का उद्देश्य

  • मानव के भीतर के विश्वास को पुनःजागृत करना।
  • किसी से बेवज़ह घृणा का भाव नहीं रखना।
  • असहाय, जरूरतमंदों की सहायता करना।
  • कर्तव्यरत होना।

यह कहानी का उद्देश्य स्वार्थ को त्यागना और कर्तव्यपरायण रहना इसे ही अपने जीवन का उद्देश्य समझना सिखलाती है।

अपने प्रेम के इतने समीप होकर भी अपने कर्तव्य से विमुख न होकर उसे त्याग देना लोक हित और अपने दायित्वों का निर्वहन करना ये कहानी सिखाती है।

उपरोक्त सभी बातें आकाशदीप कहानी की उद्देश्य को दर्शाती है।

इसे भी पढ़े स्कन्दगुप्त नाटक की समीक्षा और पात्र परिचय।

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