यहाँ हम देवरानी-जेठानी की कहानी (1870) पंडित गौरीदत्त द्वारा लिखित की समीक्षा और उसके सार की चर्चा करेंगे।
इस उपन्यास को हिंदी का प्रथम उपन्यास कहा जाता है।
डॉ. गोपालराय ने इस उपन्यास को हिंदी का प्रथम उपन्यास माना है।
यह उपन्यास अपने कथ्य में सामाजिकता और यथार्थ प्रस्तुत करता है।
इसके अंतर्वस्तु में तत्कालीन समाज का चित्रण है।
लेखक ने इसमें समकालीन नारी की सामाजिक – पारिवारिक स्तिथि की चिंता का जिक्र किया है।
बालविवाह, बँटवारा, स्त्री – शिक्षा, बहुओं की समस्याएँ और विवाह में गैर जरूरी खर्च का उपन्यास में महत्वपूर्ण स्थान है।
यह पुनर्जागरण की चेतना से जुड़ी रचना है।
अशिक्षा के कारण मध्यवर्गीय स्त्रियों की दशा का वर्णन है।
नारी शिक्षा सामाजिक परिवर्तन में अपनी अहम भूमिका निभा सकती है।
उपन्यास के प्रमुख पात्र
सर्वसुख – यह प्रमुख पात्र है। जो कि मेरठ का प्रसिद्ध बनिया है।
छोटेलाल – यह मुख्य पात्र है और सर्वसुख का बेटा है। जो कि शिक्षित एवं समझदार है।
छोटी बहू (देवरानी) – छोटेलाल की पत्नी तथा प्रमुख नारी पात्र है। जो कि शिक्षित एवं समझदार है।
दौलतराम – सर्वसुख का बड़ा बेटा है।
ज्ञानो (जेठानी) – दौलतराम की पत्नी और घर की बड़ी बहू है।
यह अशिक्षित है। सदैव सास और देवरानी की आलोचना करती है।
अतिरिक्त पात्र – पार्वती तथा सुखदेई सर्वसुख की बेटियाँ)। नन्हे, मोहन आदि ।
देवरानी-जेठानी की कहानी की समीक्षा
उपन्यास में सर्वसुख नाम का एक बनिया है |
जिसके दो पुत्र (दौलतराम और छोटेलाल) तथा दो पुत्रियाँ (पार्वती और सुखदेई) हैं।
छोटी बहू (देवरानी) संस्कारी और उसे धन संपत्ति का कोई लालच नहीं है।
वही बड़ी बहू (ज्ञानो/जेठानी) लालची स्वभाव की है ।
अपने लालच के कारण अपने पति दौलतराम और सास को छोटी बहू के विरुद्ध भड़काकर घर का बँटवारा करवा दिया।
उपन्यास के अंत में भी उसका स्वार्थी स्वभाव दिखाई देता है।
जब बँटवारे में मंडी की दुकान दौलतराम के हिस्से आई और हवेली छोटेलाल के हिस्से। किन्तु इससे भी वह असंतुष्ट थी।
हवेली से जाते वक्त हवेली की दो खिड़कियों और दरवाजे के चौखट भी अपने साथ ले गयी ।
बालविवाह का प्रचलन होने के बावजूद छोटेलाल और उसकी पत्नी ने अपने पुत्रों का बालविवाह नहीं करवाया।
बल्कि उन्हें शिक्षित करवाया।
विधवा विवाह भी उस समय एक असम्भव कार्य था ।
किंतु छोटेलाल की बहू की मामा की बेटी का पुनर्विवाह छोटेलाल की बहू के प्रयासों से करवाया गया।
देवरानी-जेठानी की कहानी में –
जन भाषा, किस्सागोई शैली, लोकभाषा के शब्दों का प्रयोग, बोलचाल का तरीका और मुहावरे लोकोक्ति का प्रयोग दिखता है।
इसे भी पढ़े परीक्षा गुरु – लाला श्रीनिवास दास की समीक्षा एवं सार।