परीक्षा गुरु उपन्यास जो कि लाला श्रीनिवास दास द्वारा लिखित 1882 में प्रकाशित हुई।
जिसे हिंदी का प्रथम मौलिक उपन्यास भी माना जाता है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लाला श्रीनिवासदास कृत परीक्षा गुरु को अंग्रेजी के ढ़ंग का हिन्दी का पहला मौलिक उपन्यास माना है।
लेखक परिचय
लाला श्रीनिवास बहुभाषी थे जो कि हिंदी, उर्दू, संस्कृत, फ़ारसी और अंग्रेजी भाषा के जानकार थे।
श्रीनिवास दास जी को हिंदी में आधुनिक ढंग का उपन्यास लिखने का गौरव प्राप्त है ।
ये भारतेंदु युग के चर्चित लेखकों में से एक है।
उपन्यास के अतिरिक्त इन्हें नाटक में भी भरपूर ख्याति मिली थी।
पात्र परिचय
लाला मदनमोहन – दिल्ली के रहनेवाले कारोबारी एवं साहूकार है।
कथा के केंद्रबिंदु है। यह मध्यवर्गीय सोच से ग्रषित है।
इन्हें पश्चिमी सभ्यता से बेहद लगाव हैं और इसी कारणवश वह संकट में आते है। कहानी इनके इर्दगिर्द घूमती है।
ब्रजकिशोर – मदनमोहन का सच्चा मित्र है।
जो कि बुद्धिमान और पेशे से वकील है।
इनके ही कारण लाला मदनमोहन संकटों से बाहर आते है।
परीक्षा गुरु उपन्यास की समीक्षा
यह उपन्यास में दिल्ली में रहने वाले एक कारोबारी और साहूकार लाला मदनमोहन पर केंद्रित है।
जो कि एक सम्पन्न व्यक्ति है और पश्चिमी सभ्यता के ऊपर बेहद मोहित है।
इस चक्कर में पड़कर अपव्यय करता हैं और कई संकटों में फँस जाता है।
लाला मदनमोहन के कई मित्र उन्हें गलत मार्ग के की ओर अग्रसित करते हैं।
कई तरह के गलत मार्गों का रास्ता दिखाते है जैसे फिजूलखर्ची, शराब, वैश्या, जुआ आदि ।
केवल ब्रजकिशोर ही लाला मदनमोहन को अवनति के मार्ग से बाहर का रास्ता दिखाते हैं और सही मार्गदर्शन करते है।
इस उपन्यास के माध्यम से लेखक यह बताना चाहता हैं कि स्वार्थी मित्र विपत्ति के समय साथ छोड़ देंगे और सच्चा मित्र ही तब साथ निभाएगा।
अर्थात सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति में ही होती है।
उपन्यास में लाला मदनमोहन महाजनी संस्कृति के प्रतीक हैं, जो सामंतवादी प्रवृति से जकड़े हुए हैं।
उपन्यास में देश की चिंता की गई है।
हमें अपनी पूंजी का संरक्षण करना चाहिए और देश हित में ही ख़र्च करना चाहिए।
लेखक ने इस ओर भी ध्यानाकर्षण किया हैं कि व्यापार जो कि निरंतर बढ़ती हुई शक्ति है, वह चापलूसों और सामंती अविवेक से घिरी हुई है ।
देश को प्रगति के मार्ग की ओर अग्रसर करवाने के लिए ऐसे कुप्रवृत्तियों से देश को मुक्त करवाना होगा।
परीक्षा गुरु के पात्रों और उनके कार्यव्यपारों की यथार्थता, वास्तुशिल्प की नवीनता और भाषा संबंधी यथार्थवादी दृष्टिकोण के कारण यह रचना उपन्यास के अधिक निकट है।
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