सिक्का बदल गया कहानी वर्ष 1948 में प्रतीक पत्रिका में प्रकाशित हुआ।
इस कहानी में विभाजन से उत्पन्न कठोर परिस्थितियों का मार्मिक चित्रण है।
इस कहानी में यह स्पष्ट किया गया है कि समय बदलते देर नहीं होती।
जिस हवेली की मालिकन हुआ करती थी उसी से उसे निकाला जा रहा है और शरणार्थी कैम्प में जाने को मजबूर किया जा रहा।
शाहनी एक विधवा स्त्री है जिसे विभाजन की त्रासदी से गुजरना पड़ता है।
लेखक परिचय
नौकरीपेशा स्त्री की समस्या, स्त्री की आत्मसजगता और परंपरागत समाज में उसकी घुट एवं उससे बाहर निकलने की छटपटाहट कृष्णा सोबती की कहानियों में प्रामाणिकता के साथ अभिव्यक्त हुई है। यह नई कहानी आंदोलन की कहानीकार है। इनकी कहानियाँ ‘बदलों के घेरे’ समूह में संकलित है।
पात्र परिचय
शाहनी – कहानी की प्रमुख पात्र। जो कि हवेली की मालिकन है।
शाहजी – शाहनी के पति जिनका देहांत हो चुका है।
शेरा – शाहजी का सेवक था। शाहनी ने इसकी माँ की मृत्यु के बाद इसे पालन-पोषण किया था।
हसैना – शेरा की पत्नी।
दाऊद- थानेदार,जो हवेली खाली करवाने आता है।
सिक्का बदल गया कहानी की समीक्षा
कहानी की शुरुआत सुबह से होती है जहाँ शाहनी चेनाब नदी में नहाकर सूर्य देवता को नमस्कार करती है।
शाहनी को आज पता नहीं क्यों सब अलग सा प्रतीत हो रहा है।
सब शाहनी को मारना चाहते है यह बात शेरे से कहते नहीं बन रहा।
तभी उसे शरणार्थी कैम्प में ले जाने वाली ट्रक आती है।
शाहनी का यह सुनकर मन भारी हो गया वह सुनकर मूर्तिवत खड़ी रही।
आज पूरा गाँव वहाँ जमा है जो कभी शाहनी के इशारों पर नाचता था।
जिन्हें शाहनी ने अपने नाते-रिश्तेदारों से कम नहीं समझा ।
लेकिन नहीं, आज वह पूरी अकेली है उसका आज कोई नहीं है।
आजतक सब फैसले, मश्विरे इसी हवेली पर होते रहें इसे लूट लेने की बात भी यही सोची गयी थी।
बूढ़ी शाहनी इस बात से अनजान थी कि सिक्का बदल गया है।
वह लोग भी आज उससे अकड़कर बोल रहे है जिसपर उसने कई ऐहसान किए थे।
शाहनी से थानेदार ने कहा – सब कुछ बाँध लिया है? सोना – चाँदी…।
शाहनी ने कहा सोना – चाँदी ! जरा ठहरकर सादगी से कहा, सोना – चाँदी बच्चा, वह सब कुछ तुम लोगों के लिए है। मेरा सोना तो एक-एक जमीन में बिछा है।
शाहनी खाली हाथों अपने घर से निकल जाती है एक भी नगदी लिए बिना।
शाहनी जाते वक्त बस इतना कहती गयी लोगों के जिद्द करने पर
“रब्ब तुहानू सलामत रक्खे बच्चा, खुशियाँ बख्शे…!”
शाहनी
यह सुनकर वहाँ के लोग रो पड़े।
सबने कहा सिक्का बदल गया है। कैम्प पहुँच कर शाहनी सोचती है, ‘राज पलट गया है…सिक्का क्या बदलेगा? वह तो मैं वहीं छोड़ आयी…’
कहानी के माध्यम से यह बताया गया है कि शासन बदलते ही सिक्का भी बदल जाता है।
बँटवारे के कारण सब कुछ बदल गया, हिन्दू-मुस्लिम की एकता तथा प्रेम सब कुछ चला गया।
समय के अनुसार कैसे लोग अपना रंग बदलते है इसका उदाहरण शेरा और दाऊद है।
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