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चन्द्रगुप्त नाटक – जयशंकर प्रसाद की समीक्षा और पात्र परिचय

चन्द्रगुप्त नाटक का प्रकाशन 1931 में हुआ।

चंद्रगुप्त के जन्म के पहले तक मौर्य वंश ने कोई भी ऐतिहासिक कार्य नहीं किया था।

तब तक मौर्य शब्द का कोई नामोनिशान नहीं था।

चंद्रगुप्त के कारण मौर्य वंश का नाम सर्वत्र फैला केवल भारतवर्ष ही नहीं बल्कि ग्रीस आदि समस्त देशों से परिचित करा दिया।

नाटक के पात्र

चाणक्य ( विष्णुगुप्त) – मौर्य साम्रज्य का निर्माता। मुख्य पात्र। नाटक पूरा इसी पात्र के ऊपर निर्भर है।

चंद्रगुप्त – मौर्य-सम्राट। नाटक का नायक है। जो कि निर्भीक, दृढ़ और आत्मविश्वास से परिपूर्ण है

नंद – मगध का सम्राट।

राक्षस – मगध का अमात्य।

वररुचि (कात्यायन) – मगध का अमात्य।

शकटार – मगध का मंत्री।

आम्भीक – तक्षशिला का राजकुमार।

पर्वतेश्वर – पंजाब का राजा (पोरस)।

सिंहरण – मालव गण-मुख्य का कुमार। जो कि एक गौण पात्र है।

लेकिन चाणक्य, चन्द्रगुप्त, अलका, आम्भीक इन सभी पात्रों पर इसका प्रभाव है।

नाटक को प्रचालित करने का कार्य करता है।

सिकंदर – ग्रीक-विजेता।

फिलिप्स – सिकंदर का क्षत्रप।

मौर्य सेनापति – चंद्रगुप्त का पिता।

एनिसाक्रिटीज़ – सिकंदर का सहचर।

देवबल, नागदत्त, गण-मुख्य – मालव-गणतंत्र के पदाधिकारी।

साइबर्टियस, मेगास्थनीज – यवन दूत।

गांधार-नरेश – आम्भीक का पिता।

सिल्यूकस – सिकंदर का सेनापति।

दण्डयायन – एक तपस्वी।

अलका – मुख्य नारी पात्र। गांधार नरेश की पुत्री।

तक्षशिला की राजकुमारी। आम्भीक की बहन। राजकुमारी दयालु, गुणी और साहसी थी।

सुवासिनी – शकटार की कन्या।

कल्याणी – मगध-राजकुमारी।

नीला, लीला – कल्याणी की सहेलियाँ।

मालविका – सिंधु-देश की कुमारी। मुख्य नारी पात्र।

यह एक संघर्षशील, स्वाभिमानी स्त्री है। जो कि अशिक्षित भी है।

कार्नेलिया – सिल्यूकस की कन्या।

मौर्य-पत्नी – चंद्रगुप्त की माता।

एलिस – कार्नेलिया की सहेली।

चन्द्रगुप्त नाटक की समीक्षा

चन्द्रगुप्त नाटक चार अंकों में विभाजित है।

इनमें से तीन घटनाएँ ऐतिहासिक हैं –

  1. अलक्षेन्द्र का आक्रमण
  2. नंदकुल की पराजय
  3. सेल्यूकस का प्रभाव

प्रथम अंक

चन्द्रगुप्त नाटक का प्रथम अंक में तक्षशिला के गुरुकुल के मठ का चित्रण है। जिसमें चाणक्य और सिंहरण का वार्तालाप है।

प्रथम अंक में अलक्षेन्द्र का आक्रमण होता हैं, नंदकुल का विनाश होता है और सभी पात्रों को संघर्षरत दिखाया गया है।

प्रथम अंक में ग्यारह दृश्य हैं –

  1. स्थान – तक्षशिला के गुरुकुल का मठ जहाँ चाणक्य और सिंहरण के बीच बातचीत होती है।
  2. इसमे मगध सम्राटों की विलासिता का जिक्र है। जिसमें विलासी युवक और युवतियों का विकार दिखाई देता है।
  3. पाटलिपुत्र में एक भगनकुटीर। जहाँ चाणक्य और प्रतिवेशी के मध्य संवाद है।
  4. कुसुमपुर के सरस्वती-मंदिर के उपवन का पथ है। जिसमें राक्षस, सुवासिनी, कल्याणी, नीला, ब्रह्मचारी, चन्द्रगुप्त और लीला के मध्य संवाद है।
  5. मगध में नंद की राजसभा का दृश्य है। जहाँ राक्षसों और सभासदों के साथ नंद का दृश्य का वर्णन है। जिसमें चाणक्य, वररुचि, कल्याणी, चन्द्रगुप्त, राजकुमारी और प्रतिहारी के बीच संवाद है।
  6. सिंधु नदी तट पर अलका और मालविका का दृश्य है। जिसमें यवन, सिंहरण और सैनिक के मध्य संवाद है।
  7. मगध का बंदीगृह का दृश्य। जहाँ चाणक्य, राक्षस और वररुचि के मध्य संवाद है।
  8. गंधार नरेश का प्रकोष्ठ जिसमें राजा चिंतायुक्त प्रवेश करते है। जहाँ राजा, अलका, यवन और आम्भीक के मध्य संवाद है।
  9. पर्वतेश्वर की राजसभा । जिसमें चाणक्य और पर्वतेश्वर के बीच संवाद है।
  10. कानन पथ में अलका जाती हुई का दृश्य है। जहाँ अलका, सिल्यूकस, चाणक्य और चन्द्रगुप्त के मध्य संवाद है।
  11. सिंधु तट पर दण्डयायन का आश्रम। जहाँ एनिसाक्रिटीज़, दण्डयायन, अलका,चन्द्रगुप्त,यवन,चाणक्य,सिकंदर और सिल्यूकस का प्रवेश है।

द्वितीय अंक

पश्चिमोत्तर प्रान्त की राजनीतिक स्तिथि को प्रस्तुत किया गया है।

फिलिप्स के चंगुल से कार्नेलिया का चन्द्रगुप्त द्वारा उद्धार।

इसके पश्चात कार्नेलिया का चन्द्रगुप्त का अपना बन जाना दिखाई दिया है।

विदेशी सेना की यथास्थिति चाणक्य को प्राप्त होना

मगध का पुनः समस्त कार्य-व्यापारों का केंद्र बनना।

चन्द्रगुप्त का दोनों गणतंत्रों का सेनापति बनना।

द्वितीय अंक में दस दृश्य हैं –

  1. उद्भाण्ड में सिंधु के किनारे ग्रीक-शिविर के पास वृक्ष के नीचे कार्नेलिया बैठी हुई का दृश्य है। जिसमें कार्नेलिया, फिलिप्स, सिकन्दर, एनिसाक्रिटीज़, आम्भीक, सिल्यूकस, और चन्द्रगुप्त के मध्य वार्तालाप है।
  2. झेलम तट का वन पथ। अलका, चाणक्य, चन्द्रगुप्त, गान्धार-राज, सिंहरण, कल्याणी, सेनापति और पर्वतेश्वर के मध्य वार्तालाप है।
  3. युद्धक्षेत्र-सैनिकों के साथ पर्वतेश्वर। पर्वतेश्वर, सेनापति, कल्याणी, चन्द्रगुप्त, सिल्यूकस, सिंहरण, सिकंदर के मध्य वार्तालाप है।
  4. मालव में सिंहरण के उद्यान का एक अंश। मालविका, चन्द्रगुप्त, चाणक्य और सैनिक के बीच वार्ता है।
  5. स्थल-बंदीगृह, घायल सिंहरण और अलका। अलका, सिंहरण और पर्वतेश्वर के बीच वार्ता है।
  6. मालवों के स्कंधारवार में युद्ध – परिषद। देवबल, नागदत्त, सिंहरण, गणमुख्य और चाणक्य के मध्य वार्ता।
  7. पर्वतेश्वर का प्रवेश। जहाँ अलका और पर्वतेश्वर के मध्य वार्ता।
  8. रावी के तट पर सैनिकों के साथ मालविका और चन्द्रगुप्त, नदी में दूर पर कुछ नावें। चन्द्रगुप्त, मालविका, सैनिक, सिंहरण, अलका और यवन के मध्य वार्ता।
  9. शिविर के समीप कल्याणी और चाणक्य। जहाँ राक्षस, कल्याणी और चाणक्य के मध्य वार्ता।
  10. मालव दुर्ग का भीतरी भाग, एक शून्य परकोटा। जहाँ मालविका, अलका, सिंहरण, सिकंदर, यवन और मालव-सैनिक के मध्य वार्ता।

तृतीय अंक

चाणक्य के ज्ञान और बुद्धि से चन्द्रगुप्त को शक्तिशाली बनाना और नंद का विनाश करना।

चन्द्रगुप्त को समस्त प्रजा द्वारा राजा स्वीकारना।

इस अंक में नौ दृश्य हैं –

  1. विपाशा तट का शिविर जहाँ राक्षस टहलता हुआ। राक्षस, चर, नायक और नवागत-सैनिक के मध्य वार्ता।
  2. रावी तट के उत्सव शिविर का एक पथ। पर्वतेश्वर अकेले टहलते हुए। पर्वतेश्वर का आत्महत्या करने का प्रयास। चाणक्य, पर्वतेश्वर, वृद्ध गान्धार नरेश, कार्नेलिया, चन्द्रगुप्त, फिलिप्स, कल्याणी और राक्षस के मध्य वार्ता।
  3. रावी का तट सिकंदर का बेड़ा प्रस्तुत है; चाणक्य और पर्वतेश्वर। सिकंदर, चन्द्रगुप्त और सिल्यूकस के मध्य वार्ता।
  4. पथ में चर और राक्षस। चर, राक्षस, सिंहरण, अलका, चाणक्य, पर्वतेश्वर, चन्द्रगुप्त, मालविका के बीच वार्ता।
  5. मगध में नंद की रंगशाला। जहाँ नंद सुवासिनी के साथ दुर्व्यवहार करना चाहता है किंतु राक्षस के आने पर रुक जाता है।
  6. कुसुमपुर का प्रान्त भाग – चाणक्य, मालविका,अलका और शकटार ।
  7. नंद के राज-मंदिर का एक प्रकोष्ठ। नंद, वररुचि, स्त्री, प्रतिहार, मालविका।
  8. कुसुमपुर के प्रांत में-पथ। चाणक्य, पर्वतेश्वर, अलका, मौर्य, शकटार, चन्द्रगुप्त, वररुचि, नागरिक।
  9. नंद की रंगशाला – सुवासिनी और राक्षस बंदी वेश में। नंद, राक्षस, नागरिक, शकटार, चन्द्रगुप्त, वररुचि, चाणक्य।

चतुर्थ अंक

पर्वतेश्वर के मृत्यु के पश्चात कल्याणी का आत्महत्या कर लेना।

सभी आंतरिक विद्रोह को चाणक्य समाप्त कर देता है।

राक्षस एवं सुवासिनी और चन्द्रगुप्त एवं कार्नेलिया विवाह कर लेते है।

ततपश्चात चाणक्य राजनीति से विश्राम लेता है यह कहकर कि चिर विश्राम के लिए संसार से अलग होना चाहता हूँ।

चतुर्थ अंक में चौदह दृश्य हैं –

  1. मगध में राजकीय उपवन। कल्याणी, पर्वतेश्वर, चाणक्य और चन्द्रगुप्त। चाणक्य – महत्वकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीपी में रहता है!
  2. पथ में राक्षस और सुवासिनी।
  3. परिषद गृह। राक्षस, शकटार, कात्यायन, मौर्य, मौर्य-पत्नी, सुवासिनी, दौवारिक, चर, मालविका और चाणक्य।
  4. प्रकोष्ठ में चन्द्रगुप्त का प्रवेश। चन्द्रगुप्त, मालविका और कुंचकी।
  5. प्रभात राज मंदिर का एक प्रान्त। चन्द्रगुप्त, प्रतिहारी, चाणक्य और सिंहरण। चन्द्रगुप्त- अधिक हर्ष, अधिक उन्नति के बाद ही तो अधिक दुख और पतन की बारी आती है !
  6. सिंधु तट पर्णकुटीर। चाणक्य, कात्यायन, चर, आम्भीक, अलका, नागरिक और सुवासिनी। “सिंहरण- मनुष्य साधारण धर्मा पशु है, विचारशील होने से मनुष्य होता है और निःस्वार्थ कर्म करने से वही देवता भी हो सकता है।”
  7. कपिशा में एलेक्जेंड्रिबा का राज मंदिर। कार्नेलिया और उसकी सखी, राक्षस, एलिस, और सिल्यूकस।
  8. पथ में चन्द्रगुप्त और सैनिक। नायक, चन्द्रगुप्त और सैनिक।
  9. ग्रीक शिविर। कार्नेलिया, एलिस, दासी, सुवासिनी और सिल्यूकस।
  10. युद्ध क्षेत्र के समीप चाणक्य और सिंहरण। चर, चाणक्य, सिंहरण, चन्द्रगुप्त, सिल्यूकस और आम्भीक।
  11. शिविर का एक अंश। चिंतित भाव में राक्षस का प्रवेश। राक्षस, सुवासिनी, कार्नेलिया, चन्द्रगुप्त और सिल्यूकस।
  12. पथ में साइवर्टियस और मेगास्थनीज़। साइवर्टियस, मेगास्थनीज़, सिल्यूकस और कार्नेलिया।
  13. दण्डयायन का तपोवन; ध्यानस्त चाणक्य। भयभीत भाव से राक्षस और सुवासिनी का प्रवेश। मौर्य, चन्द्रगुप्त और प्रतिहारी।
  14. राज सभा। एक ओर सपरिवार चन्द्रगुप्त और दूसरी ओर से एलिस, साइवर्टियस, मेगास्थनीज़ और कार्नेलिया के साथ सिल्यूकस का प्रवेश; सब बैठते है। चाणक्य।

चन्द्रगुप्त नाटक मौर्य साम्राज्य के उत्थान और मगध के राजा घनानंद के पतन की कहानी इससे बयां होती है।

चन्द्रगुप्त नाटक चाणक्य के प्रतिशोध और विश्वास की कहानी कहता है।

इसमें प्रेम के लिए त्याग भाव दिखाया गया है

इसमे सरल हिंदी भाषा का उपयोग दिखाई देता है।

इसे भी पढ़े राही कहानी की समीक्षा।

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