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दुनिया का सबसे अनमोल रतन कहानी – प्रेमचंद की समीक्षा और पात्र परिचय

दुनिया का सबसे अनमोल रतन कहानी प्रेमचन्द की पहली कहानी है।

यह कानपुर की एक उर्दू पत्रिका “जमाना” में वर्ष 1907 में प्रकाशित हुई।

ततपश्चात यह कहानी “सोजे वतन” प्रेमचंद की कहानी संग्रह में भी संकलित की गयी।

कहानी में एक ऐसे सच्चे प्रेमी का जिक्र है।

जो कि अपनी प्रेमिका को अपने रूप रंग से नहीं बल्कि कुछ भी कर गुजरने के जज़्बे से अपनी ओर आकर्षित करता है।

इस कहानी का मूल कहे तो एक प्रेमी जो कि अपनी प्रेमिका से बेशुमार मुहब्बत करता है और उसे ये जताने के लिए कुछ भी कर सकता है।

कहानी के पात्र

दिलफ़िगार – कहानी का मुख्य पात्र।

जो कि दिलफरेब से बेपनाह प्रेम करता है।

वह अपने प्रेम को सिद्ध करने के लिए कुछ भी करने को उतारू है।

दिलफरेब – एक बेहद खूबसूरत स्त्री और कहानी की मुख्य नारी पात्र

काला चोर – जो कि एक कैदी है। ज़ुर्म करने के कारण उसे फांसी दी जा रही थी।

एक बुजुर्ग – जो कि दिलफ़िगार की हौसलाअफजाई करता है।

दुनिया का सबसे अनमोल रतन कहानी की समीक्षा

जैसे कि कहानी की शुरुआत भी इस बात से होती है –

“उन प्रेमियों में नहीं, जो इत्र-फुलेल में बसकर और शानदार कपड़ों से सजकर आशिक के वेश में माशूकियत का दम भरते हैं।

बल्कि उन सीधे-सादे भोले-भाले फ़िदाइयों में जो जंगल और पहाड़ों से सर टकराते हैं और फ़रियाद मचाते फिरते हैं।”

दिलफ़िगार ने अपने प्रेम को दिलफरेब के समक्ष प्रस्तुत किया।

दिलफरेब ने उसके प्रेम को सिद्ध करने के लिए शर्त रखी।

दिलफरेब ने कहा यदि तू मेरा सच्चा प्रेमी है तो जा और दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ लेकर मेरे दरबार में आ तभी तुम्हें अपनी गुलामी में क़बूल करूँगी।

साथ ही यह भी कहा कि यदि तुम वो नहीं ला सके तो इधर भूल से भी मत आना वरना सूली पर चढ़वा दूँगी।

दिलफ़िगार अब सोच में पड़ गया कि आखिर दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ क्या होगी और वो मिलेगी कहाँ?

इसी सोच में वो हैरान-परेशान कई दिनों तक भटकते रहता है।

तभी वो भटकते-भटकते एक मैदान में पहुँचा जहाँ बहुत भीड़ जमा थी।

वहाँ एक कैदी को फाँसी होने वाली थी जिसने कई मासूमों-बेगुनाहों की जान ली थी।

कैदी को उस भीड़ से अनजान एक बच्चे को खेलता देख अपनी बचपन की यादें ताज़ा हो गयी जब वो भी एक बेगुनाह और निष्कपट था।

उन बीते दिनों की यादें उसके आँखों में आँसू बन टपक पड़ी।

दिलफ़िगार ने उस आँसू को अपने हाथों में ले लिया इस सोच के साथ के एक मरते हुए व्यक्ति की आँसू से अनमोल क्या हो सकता है।

वह दिलफरेब के पास जाता है पर मन में संशय भी रहता यदि यह वो अनमोल चीज़ न हुई तो वह फाँसी पर चढ़वा दिया जायेगा।

दिलफरेब ने दिलफ़िगार की कोशिश की तारीफ की पर कहा कि यह वो अनमोल रत्न नहीं है ।

उसकी जान बक्श देती है और पुनः कोशिश करने की सलाह देती है कि तुझमें वो जज्बा है और वो सूझ-बूझ भी मुझे यकीन है कि वह तुम्हें वो मिल जाएगा।

कुछ दिनों बाद दिलफ़िगार को एक चिता पर एक सोलह श्रृंगार किए एक स्त्री और उसकी गोद में उसके पति का सर है।

दोनों चिता में जलकर राख हो गए अपने पति के मरने पर उसकी पत्नी सती हो गयी थी।

दिलफ़िगार ने सोचा कि पत्नी ने अपने पति के प्रेम के लिए खुद भी दुनिया को अलविदा कर दिया।

इस सती के चिता की राख ही सबसे अनमोल रत्न है।

वह उस राख को लेकर अपनी दिलफरेब के शहर मीनोसवाद पहुँचा।

किन्तु पिछली बार की तरह दिलफरेब ने उसकी कोशिश की तारीफ़ की और उस तोहफ़े की भी।

पर साथ ही यह भी कहा कि यह दुनिया का सबसे अनमोल रत्न नहीं है।

दिलफ़िगार बेहद मायूस हुआ और आत्महत्या करने पहाड़ की चोटी पर गया था ।

तभी एक बुजुर्ग ने उसे ऐसा करने से रोका।

उस वृद्ध ने दिलफ़िगार की हौसलाअफजाई की और कहा कि तू क्या बुझदिलों की हरकत कर रहा है उसने मुहब्बत की ताक़त उसे बताया।

मर्द बन यू मत हार मान मज़बूत इरादे ही मुहब्बत की मंजिल पर ले जा सकती है।

उन्होंने हिन्दुस्तान जाने का मार्ग बताया कि वहाँ जा वही तुझे वो अनमोल रत्न मिलेगी।

वह हिन्दुस्तान पहुँचा उसने लड़ाई के मैदान में देखा कई लाशें पड़ी थी।

वहाँ एक राजपूत सिपाही जिसमें अभी प्राण बाकी थे जो मृत्युशैया पर था।

उसने दिलफ़िगार को अपनी गुलामी की और वतनपरस्ती की बातें बताई ।

कहा कि गुलामी की जिंदगी से बेहतर मर जाना है।

उस सिपाही ने दम तोड़ दिया भारत माता की जय के साथ।

दिलफ़िगार को उस लहू-लुहान सिपाही के खून के अंतिम कतरे से सुझा की वाकई ये वो अनमोल रत्न है।

जो कि एक सच्चे देश भक्त ने देशभक्ति का हक अदा किया।

उस खून के कतरे को हाथ में लेकर दिलफ़िगार अपने वतन दिलफरेब के पास गया।

उसने उस राजपूत सिपाही की बहादुरी को बताया और उस खून को दिलफरेब को सौपा।

दिलफरेब ने उसे गले से लगाया और कहा आज से तू मेरा मालिक है और मैं तेरी लौंडी!

एक रत्नजड़ित मंजूषा मंगवाकर उसमें से एक तख्ती निकाली उसपर लिखा था –

“खून का वह आख़री क़तरा जो वतन की हिफ़ाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ है।”

इस कहानी में देशप्रेम और देश के लिए कुछ कर गुजरने की चाह को जगाने के लिए।

लोगों में देशभक्ति जागॄत हो यह इसका उद्देश्य था।

देश के लिए अपनी खून बहाने वाले सैनिकों की खून के आगे सभी चीजों को गौण बताया गया है।

प्रेमचंद ने गुलामी में जीने से बेहतर मरने का संदेश भी दिया घुट-घुट कर जीने को जीना नहीं कहते।

शिल्पगत परिचय

प्रस्तुत कहानी में उर्दू शब्दावली से परिपूर्ण है।

अरबी-फारसी के शब्द से भी भरा है।

कथा को मनोरंजक बनाने के लिए वैसी मुहावरे और लोकोक्ति का भी उपयोग दिखाई देता है।

यह कहानी देशभक्ति को जागृत करती है।

इसी कारण अंग्रेजों ने सोजे वतन में छपी इसकी प्रतिलिपि को ज़ब्त कर लिया था।

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