नाटक के पात्र
ककड़ी बेचने वाला – जो कि नाटक का केंद्रीय पात्र है और इसके ही चारों तऱफ नाटक घूमता नज़र आता है।
पुलिस वाला – बेनजीर का ध्यानाकर्षण के लिए उसके ग्राहक को खोमचे वालों के मध्य लड़ाई करवाने के आरोप में गिरफ्तार करता है।
अन्य पात्र – तरबूज वाला, पानवाला, कनमैलिया, मदारी, शायर, किताब वाला, हमजोली आदि।
आगरा बाज़ार नाटक की समीक्षा
पूरा नाटक एक ककड़ी वाले के इर्दगिर्द घूमता है जिसका ककड़ी कोई भी नहीं खरीदता। वह नजीर अकराबादी की कविताओं का वाचन करते हुए बेचता है और उसकी ककड़ियाँ बिकने लगती है। आगरा बाज़ार नाटक में एक सामान्य व्यक्ति अपनी जीवन की विषमताओं के साथ दिखाया गया है। नाटक में मेला, बाज़ार और उसमें उपस्थित सभी कार्यरत विक्रेता या कलाकारों का चित्रण किया गया है जिसमें – मदारी, उत्सव, पतंगबाजी, होली, आदि का जिक्र है। नाटक की शुरुआत फकीरों के गायन से होता है। जिसमें आगरा बाज़ार की झलक प्राप्त होती हैं जहाँ सभी विक्रेताओं का जिक्र मिलता है –सरीफ, बनिये, जौहरी और सेठ-साहूकार
देते थे सबको नकद, सो खाते हैं अब उधार
बाज़ार में खड़े हैं, पड़ी खाक बेशुमार
बैठे हैं यूँ दुकानों में अपनी दुकानदार
जैसे की चोर बैठे हो कैदी कतारबन्द
और नाटक का अंत नजीर के आदमीनामा के संदेश से होता हैं –यों आदमी पे जान को बारे हैं आदमी
और आदमी ही तेग से मारे हैं आदमी
पगड़ी भी आदमी की उतारे हैं आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे हैं आदमी
और सुन के दौड़ता है, सो वह भी है आदमी
इस नाटक में नजीर जी की ली गयी सभी कविताओं में नैतिकता का पाठ मिलता है। जो कि एक साधारण व्यक्ति के परिस्थितियों को बयाँ करती है। कविताओं के माध्यम से बताया गया है कि जीवन भी एक बाज़ार समान ही है जहाँ हम खरीदते बेचते है। वैश्यालय में भी खरीद फरोख्त होती है अपनी स्थिति कायम रखने के लिए । इसीलिए बेनजीर का ध्यान आकृष्ट करने के लिए पुलिस वाले ने उसके रोजाना ग्राहक को खोमचेवाले के बीच लड़ाई करवाने के लिए गिरफ्तार करता हैं। नाटक के अंत में नजीर जी की पंक्तियों के माध्यम से सभी को समान बताया गया है। बुरे वक्त में निम्न वर्ग लड़ते रहते है। उच्च वर्ग में अपने अंदाज में झगड़े होते है जैसे व्यवसाय के माध्यम से। इस नाटक में हबीब तनवीर ने कही भी नाटक के रूढयों का उपयोग नहीं किया। इस नाटक में न कोई नायक या नायिका के रूप में परिलक्षित होता है। इसे भी पढ़े सिंदूर की होली नाटक की समीक्षा।