मानस का हंस उपन्यास वर्ष 1972 में प्रकाशित हुआ।
अमृतलाल नागर जी द्वारा रचित एक प्रसिद्ध उपन्यास है।
इस उपन्यास को तुलसीदास के जीवन को आधार बना कर लिखा गया है।
तत्कालीन अयोध्या, काशी के बिगड़ते धार्मिक अनुष्ठान और दूषित वातावरण का यथार्थ रूप प्रस्तुत किया गया है।
मानस का हंस उपन्यास में विदेशी आक्रमणकारियों की बर्बरता और भारतीयों की पीड़ा पाठकों में स्वराज और स्वतंत्रता के बीज बोती है।
लेखक परिचय
मानस का हंस उपन्यास में तत्कालीन समय के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप परिलक्षित होता है।
अमृतलाल नागर जी एक हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार है।
उपन्यास के क्षेत्र में उनका योगदान काबिलेतारीफ है।
इन्होंने पौराणिक, आँचलिक, सामाजिक, जीवनी और ऐतिहासिक उपन्यास लिखे।
उपन्यास के पात्र
बाबा तुलसीदास – तुलसीदास जी इस मानस का हंस उपन्यास के केंद्रबिंदु है।
इन्हें ही केंद्र में रखकर इसकी रचना की गई है।
रतना – तुलसीदास जी की पत्नी है जो कि एक रूपवती है।
तुलसीदास जी अपनी पत्नी के प्रेम में आसक्त है।
अन्य पात्र – मैना कहारिन, श्यामो की बुआ, संत बेनीमाधव, रामू द्विवेदी, पंडित गणपति उपाध्याय।
मानस का हंस उपन्यास की समीक्षा
मानस का हंस उपन्यास में तुलसीदास जी को एक समान्य मनुष्य के रूप में दिखाया गया है।
इस उपन्यास में तुलसीदास के बचपन से लेकर राम नाम के मार्ग में लीन होने तक की कथा है।
हालांकि इनका बचपन संघर्षों से भरा था।
इसे हिंदी उपन्यासों की श्रेणी में क्लासिक का दर्जा प्राप्त है।
तुलसीदास जी के जन्म से लेकर मृत्यु तक की सारी घटनाओं का सुंदर प्रस्तुतिकरण है।
इसमें कुछ कल्पनिक कथाओं का भी समावेश मिलता है।
इसे नागर जी ने अपनी लखनवी शैली में लिखा है।
तुलसीदास जी का जन्म बड़े ही संकटग्रस्त समय में हुआ ।
जब देश मुगलों के पंजों में फँसा हुआ था, युद्ध की स्थिति थी और सत्ता का परिवर्तन हो रहा था।
जन्म के पश्चात माता की मृत्यु और पिता द्वारा न अपनाने के कारण बचपन अभावग्रस्त था।
तुलसीदास ने बाबा नरहरिदास से दीक्षा प्राप्त की और फिर शेष काशी में प्राप्त की।
नरहरिदास की मृत्यु के बाद उनका आकर्षण मोहिनी के प्रति हुआ पर संरक्षिका के डाँट लगाने के बाद वो यात्रा की ओर प्रस्थान कर गए।
मानस का हंस उपन्यास के पश्चात उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की जैसे – रामचरितमानस, जानकी मंगल, कवितावली, विनयपत्रिका आदि।
राजा भगत नामक भक्त के संपर्क में आकर वो रामभक्ति की ओर अग्रसित हुए।
मथुरा, सोरो, अयोध्या होते हुए वो राजपुर पहुँचते है।
राजपुर के पंडित दीनबंधु तुलसीदास के चरित्र से खुश होकर अपनी पुत्री रतना का विवाह तुलसीदास के साथ करवा देते है।
रत्नावली एक पति पवित्रता, ज्योतिष शास्त्र ज्ञानी स्त्री थी।
पत्नी के प्रति प्रेम ही उन्हें पत्नी के फटकार का कारण बना और उससे वो सांसारिक मोह – माया से दूर हो गए।
तत्पश्चात उन्होंने तीर्थ यात्रा की और रामभक्ति में तल्लीन हो गए।
जिस वक्त वो रामचरितमानस की रचना कर रहे थे उस वक्त उन्हें काशी के पंडितों के तिरस्कार का सामना करना पड़ा।
तबतक उनकी पत्नी का देहावसान हो चुका था।
फिर वो रामकथा का प्रवचन चित्रकूट में करने लगे।
फिर वो काशी में ही विनयपत्रिका का अंतिम पद लिखते हुए अस्सी घाट पर उनकी मृत्यु हो गयी।
इस उपन्यास में अमृतलाल नागर जी ने तुलसीदास की आंतरिक और बाहरी संघर्ष को भलीभांति दर्शाया है।
तुलसीदास एक आम मनुष्य की भांति जीवन के द्वंद्व जिन्हें लड़ते हुए वो रचना करते है ।
पुत्र और पत्नी अपने सबसे प्रिय लोगों को त्यागना किसी व मनुष्य के लिए कितना कठिन रहा होगा इसके पश्चात वो प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना व करते है।
उपन्यास का उद्देश्य लोगों में अनास्था और अविश्वास के समय में इनसब को पुनः जीवित करने का है।
शिल्पगत विशेषता
मानस का हंस उपन्यास में पात्रों का ऐतिहासिक, समाजशास्त्रीय और स्वछंद विश्लेषण लेखक की आधुनिक और पारंपरिक विचारधारा को दर्शाता है।
देशकाल और वातावरण का वर्णन के लिए अनेक विद्वानों के मतों का उपयोग किया है।