हिंदी के चिह्नों जो कि हिंदी लिखने और पढ़ने में हमेशा हमारे काम आती है। जो कि भाषा को एवम् अपने बात को स्पष्ट रूप में व्यक्त करने में बेहद महत्वपूर्ण सिद्ध होती है।
हिंदी के चिह्नों का गलत उपयोग पढ़ने और सम्प्रेषण में दुविधा भी डाल सकती है।
तो आइये हम इसे समझे कि हिंदी के चिह्नों का क्या, कैसे, कहां और क्यों उपयोग किया जाता है।
1. पूर्ण विराम (|)
- वाक्य के अंत होने की सूचना | जैसे – श्याम पढ़ता है |
टिप्पणी – प्रश्नवाचक तथा विस्मयसूचक वाक्यों में पूर्णता को प्रकट करने वाले चिह्न क्रमश: ? तथा ! हैं |
- अगर मूल उपवाक्य ही प्रश्न हो तो अंत में प्रश्न चिह्न आएगा | जैसे –
क्या आप बता सकते हैं कि वे कहाँ जा रहे हैं ?
- शब्द, पद तथा उपशीर्षकों के अंत में पूर्ण विराम न दिया जाए | जैसे –
प्राणी तीन तरह के होते हैं :
- थलचर
- जलचर
- नभचर
2. प्रश्न चिह्न (?)
प्रश्न पूछने कि स्तिथि में पूर्ण विराम के स्थान पर प्रश्नवाचक चिह्न लगाया जाता है | इसके प्रयोग की स्तिथियाँ निम्नलिखित हैं –
- प्रश्नवाचक वाक्यों के अंत में | जैसे –
तुम्हारा नाम क्या है ?
वह कहाँ रहता है ?
- यदि एक वाक्य में कई प्रश्नवाचक उपवाक्य हो तो पूरे वाक्य के समाप्त होने पर, अंत में | जैसे –
मैं क्या करता हूँ, मैं कहाँ-कहाँ जाता हूँ, कहा क्या खाता हूँ, यह सब जानने के आप इच्छुक क्यों हैं ?
- एक साथ जब कई प्रश्न हों तो प्रश्न चिह्न पृथक-पृथक भी लगाया जाता है | जैसे –
कहाँ ? किसे ? किस समय ? किसने साक्षर किया ?
- प्रश्न्युक्त मुहावरे के अंत में | जैसे –
ऊँट के मुँह में जीरा ?
3. विस्मयसूचक चिह्न या सम्बोधनसूचक चिह्न (!)
- हर्ष, विषाद, घृणा, आश्चर्य, विस्मय आदि प्रकट करने वाले शब्दों, उपवाक्यों अथवा वाक्य के अंत में –
कितना सुहावना है यह स्थान !
हाय ! बेचारा मारा गया !
इतनी लम्बी मूँछ !
ईश्वर न करे !
चिरंजीवी हो !
- तीव्र मनोविकार व्यक्त करने के लिए –
गधा कहीं का !
निपट गँवार !
- निरंतर वृद्धि के लिए दो चिह्न, फिर तीन चिह्न –
शोक !
शोक !!
महाशोक !!!
- प्रश्नवाचक वाक्य के अंत में भी तीव्र मनोवेग प्रदर्शित करने के लिए –
बोलते क्यों नहीं, क्या गूँगे हो !
- सम्बोधन के लिए
मोहन ! बोलो, क्या कह रहे थे ?
बोलो मोहन ! क्या कह रहे थे ?
बेटे ! तुमसे ना हो पायेगा |
मित्रो ! आज सब कुछ त्याग देने का समय आ गया है |
ओ राम ! देखो, इधर देखो |
- स्वीकृति / अस्वीकृति प्रकट करने के लिए –
अच्छा ! पर लम्बा चक्कर मत लगाना|
यह हरगिज़ नहीं हो सकता !
- अविश्वसनीयता प्रकट करने के लिए –
क्या कहा ! वह पकड़ा गया ?
4. कोलन/उपविराम (:)
सामान्यतः इसका प्रयोग आगे आने वाली सूची आदि के पूर्व किया जाता है। जैसे :- महत्वाकांक्षी के तीन शत्रु हैं : आलस्य, हीन – भावना एवम् पराश्रय।
संख्याओं में अनुपात प्रदर्शित करने के लिए :- 1:2, 5:6
नाटक/एकांकी में उद्धरण चिह्नों के प्रयोग के बिना मात्र कोलन का प्रयोग किया जाता है :-
सोना : राम की कसम “` “` देखिए !
स्थान, समय की सूचना के लिए :-
स्थान : समिति कक्ष
समय : अपराह्न चार बजे
8:32:10 = आठ बजकर बत्तीस मिनट और दस सैकंड
प्रातः 7 :30 = प्रातः सात बजकर तीस मिनट
5. अर्धविराम (;)
अर्धविराम (;) उपविराम तथा अल्पविराम के मध्य की स्थिति है। अंग्रेज़ी में इसको सेमीकोलन की संज्ञा दी गई है जिसकी आकृति कोलन के बिंदु तथा कोमा के योग से बनाई गई है। इसके प्रयोग के नियम निम्न प्रकार हैं :-
छोटे – छोटे दो से अधिक वाक्यों की श्रृंखला में, जो एक ही वाक्य पर आश्रित हों :-
विद्या विनय से आती है; विनय से पात्रता; पात्रता से धन; धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है ।
ऐसे उपवाक्यों को पृथक करने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है जो समुच्चयबोधकों से बने हों :-
आपने उसकी निंदा की; अतएव वह आपका दुश्मन बनेगा ।
स्वाभिमान मनुष्य को सहारा देता है; फिर भी कितने हैं जो इसको अपनाते हैं।
समानाधिकरण उपवाक्यों के बीच में :-
भारत में राजनीतिक स्वतंत्रता का शंख महात्मा गांधी ने फूॅंका; अहिंसा और असहयोग के अस्त्र उन्होंने दिए ।
सूर्य पृथ्वी से बहुत दूर है; वह पृथ्वी से काफी बड़ा है।
अंकों के विवरण देने में :-
भारत – 2010; पाकिस्तान – 420; जापान – 2050
6. अल्पविराम/कोमा [ , ]
वाक्य, वाक्यांश में तीन या उससे अधिक शब्दों को अलग करने के लिए।
जैसे :- पटना, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई ।
वह तो अपनी भूमि, संपत्ति, प्रतिष्ठा और मान – मर्यादा सभी कुछ खो बैठा।
एक ही प्रकार के कई पदबंधों, उपवाक्यों का जब एक वाक्य में प्रयोग होता हो तो उनको अलग करने के लिए। जैसे :-
केरल की मोहक झीलें, सुंदर बाग और प्राकृतिक सौंदर्य सबको मोह लेता हैं।
वह प्रतिदिन आता है, काम करता है और लौट जाता है।
टिप्पणी : अंतिम शब्द, पदबंध, उपवाक्य से पहले अल्पविराम का प्रयोग न कर और का प्रयोग किया जाता है।
उपवाक्यवाक्य के मध्य में किसी क्षिप्त वाक्यांश/उपवाक्य को अलग दिखाने के लिए :-
गणित का पाठ्यक्रम बदल जाने से, मैं समझता हूॅं, इस वर्ष हायर सेकेंडरी का परीक्षाफल प्रभावित होगा।
सकारात्मक और नकारात्मक शब्दों में ‘ हाॅं ‘ या ‘ नहीं ‘ के बाद :-
हाॅं, मैं तो जरूर आऊॅंगा ।
नहीं, मैं नहीं जाऊॅंगा ।
बस, सचमुच, अच्छा, वास्तव में, ख़ैर आदि से प्रारंभ होने वाले वाक्यों में इनके बाद :-
बस, देख लिया तुम्हें।
सचमुच, तुम बड़े अच्छे हो।
उद्धरण से पूर्व :-
हरिमोहन ने कहा, “मैं इस बार चुनाव में खड़ा हो रहा हूॅं।”
संबोधन के बाद :-
बेटा, सवेरे जल्दी उठकर पढ़ने की आदत डालो।
जो उपवाक्य किन्तु, लेकिन, क्योंकि, पर, परन्तु, अतः आदि समुच्चयबोधक से प्रारंभ होते हैं, उनमें समुच्चयबोधक अव्यय से पहले अल्पविराम ( , ) लगाया जाता है। जैसे :-
मैं तुम्हारे साथ नहीं खेलूॅंगा, किन्तु तुम्हारा खेल ज़रूर देखूॅंगा ।
वह मेरे ही होस्टल में रहता है, लेकिन एक बार भी मुझसे नहीं मिला।
भावातिरेक में किसी शब्द/शब्द समूह पर बल देने के लिए, जब पुनरावृत्ति हो :-
दौड़ो, दौड़ो, बम फट गया।
शोक की अभिव्यक्ति, विस्मयादिबोधक शब्दों के बाद :-
हाय, मैं तो लुट गई।
धिक्कार है, तुमने ऐसा ओछा काम किया।
कभी – कभी तब, वह, तो, कि आदि संयोजक शब्दों के स्थान पर अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है। जैसे :-
जब स्टेशन पहुॅंचे, पानी तेज़ हो गया। (तब)
जो टिप्पणी कल मंत्रीजी ने भेजी है, कहाॅं है ? (वह)
जब हमें देर हो गई, हम उसके घर ही रुक गए । (तो)
समानाधिकरण शब्द/पदबंध के मध्य में इसका प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए।
यह प्रवृत्ति अंग्रेज़ी के प्रभाव से बढ़ी है, पर कुछ स्तिथियों में नितांत आवश्यक हो गई है। जैसे :-
मैं, अशोक शर्मा, यह घोषणा करता हूॅं कि ”’ ”’ ”’
तारीख के साथ माह का नाम लिखने के बाद :-
15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।
जारी है…
इसे भी जाने राजभाषा के उपबंध ।