प्रयोगधर्मी और ग्रामांचल उपन्यास में आखिर क्या अंतर है ये समस्या हमेशा मन में रहा होगा और ऑनलाइन उपलब्धता की भी समस्या।
तो आइए इसे समझते है सरल अर्थों में।
प्रयोगधर्मी और ग्रामांचल उपन्यासों में देखे तो प्रयोगधर्मी की संख्या कम है । ग्रामांचल से सम्बद्ध उपन्यासों की संख्या ज्यादा है।
वर्ष 1950 के इर्द – गिर्द ऐसा हुआ की कुछ लोग उससे अप्रभावित औपन्यासिक प्रयोग में लगे रहे।
कुछ ने देश के नवनिर्माण की ओर ध्यान दिया।
1952 में एक और धर्मवीर भारती का ‘सूरज का सांतवा घोड़ा’ प्रकशित हुआ दूसरी ओर नागार्जुन का ‘बलचनामा’।
इससे तत्कालीन समाज के अंदाज का पता चलता है।
प्रयोगधर्मी उपन्यासकारों में धर्मवीर भारती, प्रभाकर माचवे, शिवरासद मिश्र ‘रुद’, गिरिधर गोपाल और सवेश्वरदयाल सक्ससेना उल्लेख्य हैं।
इनके उपन्यासों में भी प्रमुख दो ही उपन्यास हैं-भारती का ‘सूरज का सांतवा घोड़ा’ और रूद्र का ‘बहती गंगा’।
माचवे ने ‘परँतु, ‘साँचा’, ‘जो’ आदि लिखकर प्रयोग किया।
गिरिधर गोपाल का ‘चांदनी रात का खँडहर’ (1954)।
सर्वेश्वरदयाल का ‘सोया हुआ जल’ ऐसे ही उन्यास हैं।
सूरज का सांतवा घोड़ा अपने विशिष्ट रूप के कारण लोगों का ध्यान आकृष्ट करता है न कि कथ्य की मौलिकता के कारण।
कथ्य का सम्बन्ध तो प्रेमकहानियों से है-मध्यवर्ग की प्रेमकहानी की जगह निम्नमध्यवर्ग की प्रेमकथा।
प्रयोगधर्मी और ग्रामांचल उपन्यास में अंतर अब आप भली-भांति समझ चुके होंगे।
जैन और जैनेत्तर काव्य को भी जाने।