संविधान के भाग XVII में अनुच्छेद 343 से 351 राजभाषा के उपबंध से सम्बंधित हैं ।
इसके उपबंधो को चार शीर्षक में विभाजित किया गया है –
1 – संघ की भाषा
देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी संघ की भाषा है किन्तु संघ द्वारा अधिकारिक रूप से प्रयोग की जाने वाली संख्याओं का रूप अंतरार्ष्ट्रीय होगा, न कि देवनागरी ।
2 – क्षेत्रीय भाषाएं
किसी राज्य की विधायिका उस राज्य के रूप में किसी एक या एक से अधिक भाषा का चुनाव कर सकती है। जब तक यह न हो उस राज्य कि अधिकारिक भाषा अंग्रेजी होगी ।
इस उपबंध के अंतर्गत अधिकांश राज्यों ने मुख्य क्षेत्रीय भाषा को अपनी भाषा के रूप में स्वीकार किया। उदाहरण के लिए –
आंध्र प्रदेश ने तेलुगु, केरल – मलयालम, असम – असमिया, पश्चिम बंगाल – बंगला, ओडिशा – ओडिया को अपनाया।
नौ उत्तरी राज्यों ने हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और राजस्थान ने हिंदी को अपनाया।
गुजरात ने गुजराती के अतिरिक्त हिंदी को अपनाया है।
उसी प्रकार गोवा ने कोंकणी के अतिरिक्त मराठी व गुजराती को अपनाया है।
जम्मू व कश्मीर ने उर्दू को अपनाया न कि कश्मीरी।
दूसरी ओर कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों, जैसे – मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड ने अंग्रेजी को स्वीकार किया।
3 – न्यायपालिका एवं विधि के पाठ की भाषा
संविधान में न्यायपालिका एवं विधायिका कि भाषा के सम्बन्ध में निम्नलिखित उपबंध हैं –
जब तक संसद अन्यथा यह व्यवस्था न दे, निम्नलिखित कार्य अंग्रेजी में होगे –
- उच्चतम न्यायालय व प्रत्येक उच्च न्यायालय की कार्यवाही ।
- केंद्र व राज्य स्तर पर सभी विधेयक, अधिनियम, अध्यादेश, आदेश, नियमों व उप-नियमों के अधिकारिक पाठ ।
हलांकि, किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से हिंदी अथवा किसी राज्य की किसी अन्य राजभाषा को उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा का दर्जा दे सकता है परन्तु यह न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों, आज्ञा अथवा आदेश केवल अंग्रेजी में ही होंगे। (जब तक संसद व्यवस्था न दे )
4 – अन्य विशेष निर्देशों की भाषा
भाषायी अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा व हिंदी भाषा के उथान के लिए विशिष्ट निर्देश
हिंदी भाषा का विकास
हिंदी के विकास हेतु केंद्र कुछ कर्तव्य निर्धारित करता है ताकि यह भारत की विविध संस्कृति के बीच एक लोक भाषा बन सके ।
वर्तमान में आठवी अनुसूची में 22 भाषाएं वर्णित (मूल रूप से 14) हैं।
ये हैं –
- हिंदी
- बंगाली
- गुजराती
- असमिया
- कन्नड़
- कश्मीरी
- कोंकणी
- मलयालम
- मणिपुरी
- मराठी
- नेपाली
- मैथिलि
- ओडिया
- पंजाबी
- संस्कृत
- सिन्धी
- तमिल
- तेलुगु
- उर्दू
- डोंगरी
- बोडो
- संथाली
शास्त्रीय भाषा का दर्जा
2004 में भारत सरकार ने एक नए भाषा वर्ग शास्त्रीय भाषाएं को बनाने का फैसला किया। 2006 में इसने शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का मानदंड तय किया। अब तक 6 भाषाओँ को शास्त्रीय दर्जा मिल चुका है जो कि निम्नलिखित हैं –
- तमिल (2004)
- संस्कृत (2005)
- तेलुगु (2008)
- कन्नड़ (2008)
- मलयालम (2013)
- उड़िया (2014)
यदि कोई भाषा शास्त्रीय भाषा घोषित हो गयी, तो उसे एक उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने के लिए सहायता मिलती है।
किसी भाषा को शास्त्रीय घोषित करने का आधार है – 1500-2000 वर्ष पुराने इसके प्रारंभिक ग्रंथो में दर्ज इतिहास की पौराणिकता हो।
राजभाषा से सम्बंधित अनुच्छेद –
संघ की भाषा
343 – संघ की राजभाषा
344 – राजभाषा पर संसदीय आयोग एवं समिति
क्षेत्रीय भाषाएं
345 – राज्य की राजभाषा अथवा भाषा
346 – एक राज्य से दूसरे राज्य अथवा एक राज्य से संघ के बीच संवाद के लिए राजभाषा
347 – किसी राज्य की जनसँख्या के समूह द्वारा बोली – जाने वाली भाषा से सम्बंधित प्रावधान
सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों की भाषा
348 – सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों में साथ ही अधिनियमों एवं विधेयकों में प्रयोग की जाने वाली भाषा
349 – भाषा से सम्बंधित कुछ नियम अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया
विशेष विनिर्देश
350 – शिकायत निवारण में प्रतिनिधित्व के लिए प्रयुक्त भाषा
350ए – प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षण के लिए सुविधाएँ
350बी – भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष पदाधिकारी
351 – हिंदी भाषा के विकाश के लिए विनिर्देश
इसे भी जाने हिंदी के चिह्नों का उपयोग ।